जांगडा पोरवाल समाज की उत्पत्ति
गौरी शंकर हीराचंद ओझा (इण्डियन एक्टीक्वेरी, जिल्द 40 पृष्ठ क्र.28) के अनुसार आज से लगभग 1000 वर्ष पूर्व बीकानेर तथा जोधपुरा राज्य (प्राग्वाट प्रदेश) के उत्तरी भाग जिसमें नागौर आदि परगने हैं, जांगल प्रदेश कहलाता था।
जांगल प्रदेश में पोरवालों का बहुत अधिक वर्चस्व था। समय-समय पर उन्होंने अपने शौर्य गुण के आधार पर जंग में भाग लेकर अपनी वीरता का प्रदर्शन किया था और मरते दम तक भी युद्ध भूमि में डटे रहते थे। अपने इसी गुण के कारण ये जांगडा पोरवाल (जंग में डटे रहने वाले पोरवाल) कहलाये। नौवीं और दसवीं शताब्दी में इस क्षेत्र पर हुए विदेशी आक्रमणों से, अकाल, अनावृष्टि और प्लेग जैसी महामारियों के फैलने के कारण अपने बचाव के लिये एवं आजीविका हेतू जांगल प्रदेश से पलायन करना प्रारंभ कर दिया। अनेक पोरवाल अयोध्या और दिल्ली की ओर प्रस्थान कर गये। दिल्ली में रहनेवाले पोरवाल “पुरवाल”कहलाये जबकि अयोध्या के आस-पास रहने वाले “पुरवार”कहलाये। इसी प्रकार सैकड़ों परिवार वर्तमान मध्यप्रदेश के दक्षिण-प्रश्चिम क्षेत्र (मालवांचल) में आकर बस गये। यहां ये पोरवाल व्यवसाय /व्यापार और कृषि के आधार पर अलग-अलग समूहों में रहने लगे। इन समूह विशेष को एक समूह नाम (गौत्र) दिया जाने लगा। और ये जांगल प्रदेश से आने वाले जांगडा पोरवाल कहलाये। वर्तमान में इनकी कुल जनसंख्या 3 लाख 46 हजार (लगभग) है।
आमद पोरवाल कहलाने का कारण इतिहासग्रंथो से ज्ञात होता है कि रामपुरा के आसपास का क्षेत्र और पठार आमदकहलाता था। 15वीं शताब्दी के प्रारंभ में आमदगढ़ पर चन्द्रावतों का अधिकारथा। बाद में रामपुरा चन्द्रावतों का प्रमुखगढ़ बन गया। धीरे-धीरे न केवलचन्द्रावतों का राज्य ही समाप्त हो गया अपितु आमदगढ़ भी अपना वैभव खो बैठा।इसी आमदगढ़ किले में जांगडा पोरवालों के पूर्वज काफी अधिक संख्या में रहतेथे। जो आमदगढ़ का महत्व नष्ट होने के साथ ही दशपुर क्षेत्र के विभिन्नसुविधापूर्ण स्थानों में जाकर बसते रहे। कभी श्रेष्ठीवर्ग में प्रमुख मानाजाने वाला सुख सम्पन्न पोरवाल समाज कालांतर में पराभव (दरिद्रता) कीनिम्नतम् सीमा तक जा पहुंचा, अशिक्षा, धर्मभीरुता और प्राचीन रुढ़ियों कीइसके पराभव में प्रमुख भूमिका रही। कृषि और सामान्य व्यापार व्यवसाय केमाध्यम से इस समाज ने परिश्रमपूर्वक अपनी विशिष्ठ पहचान पुन: कायम की।किन्तु आमदगढ़ में रहने के कारण इस क्षेत्र के पोरवाल आज भी आमद पोरवालकहलाते है ।
गौत्रों का निर्माण श्रीजांगडा पोरवाल समाज में उपनाम के रुप में लगायी जाने वाली 24 गोत्रें किसीन किसी कारण विशेष के द्वारा उत्पन्न हुई और प्रचलन में आ गई। जांगलप्रदेश छोड़ने के पश्चात् पोरवाल वैश्य अपने- अपने समूहों में अपनी मानमर्यादा और कुल परम्परा की पहचान को बनाये रखने के लिये इन्होंने अपनेउपनाम (अटके) रख लिये जो आगे चलकर गोत्र कहलाए। किसी समूह विशेष में जोपोरवाल लोग अगवानी करने लगे वे चौधरी नाम से सम्बोधित होने लगे। पोरवालसमाज के जो लोग हिसाब-किताब, लेखा-जोखा, आदि व्यावसायिक कार्यों में दक्षथे वे मेहता कहलाने लगे। यात्रा आदि सामूहिक भ्रमण, कार्यक्रमों के अवसर परजो लोग अगुवाई (नेतृत्व) करते और अपने संघ-साथियों की सुख-सुविधा कापूरा-पूरा ध्यान रखते वे संघवी कहे जाने लगे। मुक्त हस्त से दान देने वालेपरिवार दानगढ़ कहलाये। असामियों से लेन-देन करनेवाले, वाणिज्य व्यवसाय मेंचतुर, धन उपार्जन और संचय में दक्ष परिवार सेठिया और धनवाले धनोतिया पुकारेजाने लगे। कलाकार्य में निपुण परिवार काला कहलाए, राजा पुरु के वंशज्पोरवाल और अर्थ व्यवस्थाओं को गोपनीय रखने वाले गुप्त या गुप्ता कहलाए। कुछगौत्रें अपने निवास स्थान (मूल) के आधार पर बनी जैसे उदिया-अंतरवेदउदिया(यमुना तट पर), भैसरोड़गढ़(भैसोदामण्डी) में रुकने वाले भैसोटा, मंडावलमें मण्डवारिया, मजावद में मुजावदिया, मांदल में मांदलिया, नभेपुर केनभेपुरिया, आदि।
श्री जांगडा पोरवाल समाज की 24 गोत्र
सेठिया, काला, मुजावदिया, चौधरी, मेहता, धनोतिया, संघवी, दानगढ़, मांदलिया, घाटिया, मुन्या, घरिया, रत्नावत, फरक्या, वेद, खरडिया, मण्डवारिया, उदिया, कामरिया, डबकरा, भैसोटा, भूत, नभेपुरिया, श्रीखंडिया
भेरुजी
प्रत्येकगोत्र के अलग- अलग भेरुजी होते हैं। जिनकी स्थापना उनके पूर्वजों द्वाराकभी किसी सुविधाजनक स्थान पर की गयी थी। स्थान का चयन पवित्र स्थान के रुपमें अधिकांश नदी के किनारे, बावड़ी में, कुआं किनारे, टेकरी या पहाड़ी परकिया गया। प्रत्येक परिवार अपने पूर्वजों द्वारा स्थापित भेरुजी की वर्षमें कम से कम एक बार वैशाख मास की पूर्णिमा को सपरिवार पूजा करता है।मांगलिक अवसरों पर भी भेरुजी को बुलावा परिणय पाती के रुप में भेजा जाताहै, उनकी पूजा अर्चना करना आवश्यक समझा जाता है। भेरुजी के पूजन पर मालवाकी खास प्रसादी दाल-बाफले, लड्डू का भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण किया जाता है।भेरुजी को भगवान शंकर का अंशावतार माना जाता है यह शंकरजी का रुद्रावतारहै इन्हें कुलदेवता भी कहा जाता है। जांगडा पोरवाल समाज की कुलदेवीअम्बिकाजी (महाशक्ति दुर्गा) को माना जाता है।
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श्री जांगडा पोरवाल समाज के 24 गोत्रों के भेरुजी स्थान
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1.मांदलिया-> १. अचारिया – कचारिया
(आलोट-ताल के पास)
२.कराड़िया (तहसील आलोट)
३.रुनिजा ४. पीपल बाग, मेलखेड़ा ५. बरसी-करसी, मंडावल
2.सेठिया-> १.आवर – पगारिया (झालावाड़)
२. नाहरगढ़ ३. घसोई जंगल में ४.विक्रमपुर (विक्रमगढ़ आलोट ५. चारभुजा मंदिर दलावदा (सीतामऊ लदूना रोड)
3.काला->१. रतनजी बाग नाहरगढ़ २.पचांयत भवन, खड़ावदा ३. बड़ावदा (खाचरौद)
4.मुजावदिया- >
१.जमुनियाशंकर (गुंदी आलोट) २. कराड़िया (आलोट) ३. मेलखेड़ा
४. रामपुरा
५.अचारिया, कचारिया, मंडावल
5.चौधरी - > १. खड़ावदा, (गरोठ) २. रामपुरा,
३.नेगरून ,ताल के पास
6.डपकरा-> 1.बराड़ा बराड़ी (खात्याखेड़ी)
2.आवर पगारिया (झालावाड़)
7.मेहता- > १.गरोठ बावड़ी में, २.रुनिजा
8.धनोतिया- > जगत भेरू रूनिजा-घसोई मे २.कबीर बाड़ी रामपुरा ३.ताल मंण्डावल बावड़ी मे
४.खेजड़िया
9.संघवी-> खड़ावदा (पंचायत भवन)
10.दानगढ़-> १ आवरा (चंदवासा के पास)
२.बुच बेचला (रामपुरा)
घाटिया- लदूना रोड़ सीतामऊ
मुन्या- गरोठ बावड़ी में
घरिया- बरसी-करसी (महिदपुर रोड़)
मंडावल (आलोट)
रत्नावत - पंचपहाड़, भैसोदामंडी
सावन (भादवामाता रोड)
बरखेड़ा पंथ
फ़रक्या- पड़दा (मनासा रोड)
बरखेड़ा गंगासा (खड़ावदा रोड)
घसोई जंगल में
बड़ागांव (नागदा)
वेद- जन्नोद (रामपुरा के पास)
साठखेड़ा
खर्ड़िया- जन्नोद (रामपुरा के पास)
मण्डवारिया- कबीर बाड़ी रामपुरा
तालाब के किनारे पावटी
दोवरे-पैवर (संजीत)
उदिया- जन्नोद (रामपुरा के पास)
कामरिया- मंडावल (तह. आलोट)
जन्नोद (रामपुरा के पास)
डबकरा- अराडे-बराडे (खात्याखेड़ी, सुवासरा रोड)
सावन, चंदवासा, रुनिजा
भैसोटा- बरसी-करती (महिदपुर रोड के पास)
मंडावल (तह. आलोट)
भूत- गरोठ बावड़ी में
रुनिजा – घसोई
नभेपुरिया - वानियाखेड़ी, (खड़ावदा के पास)
श्रीखंडिया- इन्दौर सेठजी का बाग
🌷श्री जांगडा पोरवाल समाज में प्रचलित उपाधियाँ (पदवियाँ)
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पदवी ---- वास्तविक गोत्र----------------------
चौधरी - मांदलिया, काला, धनोतिया, डबकरा, सेठिया, चौधरी या अन्य
मोदी - काला,सेठिया धनोतिया, डबकरा, दानगढ़
मरच्या - उदिया
कोठारी - मांदलिया, सेठिया या अन्य
संघवी - काला, संघवी
बटवाल - वेद
मिठा - मांदलिया
🌷समाज के प्रति हमारा उत्तरदायित्व
हमजो कुछ भी हैं और जो कुछ भी आगे बनेंगे वह समाज के कारण ही बनेंगे। हमारेये विद्यालय और जीवन की व्यावहारिक शिक्षा समाज के कारण ही हमें प्राप्तहैं। इसलिये हमें धर्म पालना चाहिए अर्थात् अपने कर्त्तव्यों का पालन करनाचाहिए।
🌷समाज के हम पर तीन ॠण माने गये हैं-
देवॠण – धरती, वायु, आकाश, अग्नि और जल आदि तत्व देवों की कृपा से ही मिले हैं।
ॠषिॠण – विद्या, ज्ञान और संस्कार ॠषिमुनियों और गुरुजनों की देन हैं।
पितृॠण – यह शरीर, मन बुद्धि अपने पिता की देन हैं।
अतः परिवार, समाज और देश के प्रति अपने कर्त्तव्यों के पालन
से ही इन ॠणों से मुक्त हो सकते हैं।
गौरी शंकर हीराचंद ओझा (इण्डियन एक्टीक्वेरी, जिल्द 40 पृष्ठ क्र.28) के अनुसार आज से लगभग 1000 वर्ष पूर्व बीकानेर तथा जोधपुरा राज्य (प्राग्वाट प्रदेश) के उत्तरी भाग जिसमें नागौर आदि परगने हैं, जांगल प्रदेश कहलाता था।
जांगल प्रदेश में पोरवालों का बहुत अधिक वर्चस्व था। समय-समय पर उन्होंने अपने शौर्य गुण के आधार पर जंग में भाग लेकर अपनी वीरता का प्रदर्शन किया था और मरते दम तक भी युद्ध भूमि में डटे रहते थे। अपने इसी गुण के कारण ये जांगडा पोरवाल (जंग में डटे रहने वाले पोरवाल) कहलाये। नौवीं और दसवीं शताब्दी में इस क्षेत्र पर हुए विदेशी आक्रमणों से, अकाल, अनावृष्टि और प्लेग जैसी महामारियों के फैलने के कारण अपने बचाव के लिये एवं आजीविका हेतू जांगल प्रदेश से पलायन करना प्रारंभ कर दिया। अनेक पोरवाल अयोध्या और दिल्ली की ओर प्रस्थान कर गये। दिल्ली में रहनेवाले पोरवाल “पुरवाल”कहलाये जबकि अयोध्या के आस-पास रहने वाले “पुरवार”कहलाये। इसी प्रकार सैकड़ों परिवार वर्तमान मध्यप्रदेश के दक्षिण-प्रश्चिम क्षेत्र (मालवांचल) में आकर बस गये। यहां ये पोरवाल व्यवसाय /व्यापार और कृषि के आधार पर अलग-अलग समूहों में रहने लगे। इन समूह विशेष को एक समूह नाम (गौत्र) दिया जाने लगा। और ये जांगल प्रदेश से आने वाले जांगडा पोरवाल कहलाये। वर्तमान में इनकी कुल जनसंख्या 3 लाख 46 हजार (लगभग) है।
आमद पोरवाल कहलाने का कारण इतिहासग्रंथो से ज्ञात होता है कि रामपुरा के आसपास का क्षेत्र और पठार आमदकहलाता था। 15वीं शताब्दी के प्रारंभ में आमदगढ़ पर चन्द्रावतों का अधिकारथा। बाद में रामपुरा चन्द्रावतों का प्रमुखगढ़ बन गया। धीरे-धीरे न केवलचन्द्रावतों का राज्य ही समाप्त हो गया अपितु आमदगढ़ भी अपना वैभव खो बैठा।इसी आमदगढ़ किले में जांगडा पोरवालों के पूर्वज काफी अधिक संख्या में रहतेथे। जो आमदगढ़ का महत्व नष्ट होने के साथ ही दशपुर क्षेत्र के विभिन्नसुविधापूर्ण स्थानों में जाकर बसते रहे। कभी श्रेष्ठीवर्ग में प्रमुख मानाजाने वाला सुख सम्पन्न पोरवाल समाज कालांतर में पराभव (दरिद्रता) कीनिम्नतम् सीमा तक जा पहुंचा, अशिक्षा, धर्मभीरुता और प्राचीन रुढ़ियों कीइसके पराभव में प्रमुख भूमिका रही। कृषि और सामान्य व्यापार व्यवसाय केमाध्यम से इस समाज ने परिश्रमपूर्वक अपनी विशिष्ठ पहचान पुन: कायम की।किन्तु आमदगढ़ में रहने के कारण इस क्षेत्र के पोरवाल आज भी आमद पोरवालकहलाते है ।
गौत्रों का निर्माण श्रीजांगडा पोरवाल समाज में उपनाम के रुप में लगायी जाने वाली 24 गोत्रें किसीन किसी कारण विशेष के द्वारा उत्पन्न हुई और प्रचलन में आ गई। जांगलप्रदेश छोड़ने के पश्चात् पोरवाल वैश्य अपने- अपने समूहों में अपनी मानमर्यादा और कुल परम्परा की पहचान को बनाये रखने के लिये इन्होंने अपनेउपनाम (अटके) रख लिये जो आगे चलकर गोत्र कहलाए। किसी समूह विशेष में जोपोरवाल लोग अगवानी करने लगे वे चौधरी नाम से सम्बोधित होने लगे। पोरवालसमाज के जो लोग हिसाब-किताब, लेखा-जोखा, आदि व्यावसायिक कार्यों में दक्षथे वे मेहता कहलाने लगे। यात्रा आदि सामूहिक भ्रमण, कार्यक्रमों के अवसर परजो लोग अगुवाई (नेतृत्व) करते और अपने संघ-साथियों की सुख-सुविधा कापूरा-पूरा ध्यान रखते वे संघवी कहे जाने लगे। मुक्त हस्त से दान देने वालेपरिवार दानगढ़ कहलाये। असामियों से लेन-देन करनेवाले, वाणिज्य व्यवसाय मेंचतुर, धन उपार्जन और संचय में दक्ष परिवार सेठिया और धनवाले धनोतिया पुकारेजाने लगे। कलाकार्य में निपुण परिवार काला कहलाए, राजा पुरु के वंशज्पोरवाल और अर्थ व्यवस्थाओं को गोपनीय रखने वाले गुप्त या गुप्ता कहलाए। कुछगौत्रें अपने निवास स्थान (मूल) के आधार पर बनी जैसे उदिया-अंतरवेदउदिया(यमुना तट पर), भैसरोड़गढ़(भैसोदामण्डी) में रुकने वाले भैसोटा, मंडावलमें मण्डवारिया, मजावद में मुजावदिया, मांदल में मांदलिया, नभेपुर केनभेपुरिया, आदि।
श्री जांगडा पोरवाल समाज की 24 गोत्र
सेठिया, काला, मुजावदिया, चौधरी, मेहता, धनोतिया, संघवी, दानगढ़, मांदलिया, घाटिया, मुन्या, घरिया, रत्नावत, फरक्या, वेद, खरडिया, मण्डवारिया, उदिया, कामरिया, डबकरा, भैसोटा, भूत, नभेपुरिया, श्रीखंडिया
भेरुजी
प्रत्येकगोत्र के अलग- अलग भेरुजी होते हैं। जिनकी स्थापना उनके पूर्वजों द्वाराकभी किसी सुविधाजनक स्थान पर की गयी थी। स्थान का चयन पवित्र स्थान के रुपमें अधिकांश नदी के किनारे, बावड़ी में, कुआं किनारे, टेकरी या पहाड़ी परकिया गया। प्रत्येक परिवार अपने पूर्वजों द्वारा स्थापित भेरुजी की वर्षमें कम से कम एक बार वैशाख मास की पूर्णिमा को सपरिवार पूजा करता है।मांगलिक अवसरों पर भी भेरुजी को बुलावा परिणय पाती के रुप में भेजा जाताहै, उनकी पूजा अर्चना करना आवश्यक समझा जाता है। भेरुजी के पूजन पर मालवाकी खास प्रसादी दाल-बाफले, लड्डू का भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण किया जाता है।भेरुजी को भगवान शंकर का अंशावतार माना जाता है यह शंकरजी का रुद्रावतारहै इन्हें कुलदेवता भी कहा जाता है। जांगडा पोरवाल समाज की कुलदेवीअम्बिकाजी (महाशक्ति दुर्गा) को माना जाता है।
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श्री जांगडा पोरवाल समाज के 24 गोत्रों के भेरुजी स्थान
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1.मांदलिया-> १. अचारिया – कचारिया
(आलोट-ताल के पास)
२.कराड़िया (तहसील आलोट)
३.रुनिजा ४. पीपल बाग, मेलखेड़ा ५. बरसी-करसी, मंडावल
2.सेठिया-> १.आवर – पगारिया (झालावाड़)
२. नाहरगढ़ ३. घसोई जंगल में ४.विक्रमपुर (विक्रमगढ़ आलोट ५. चारभुजा मंदिर दलावदा (सीतामऊ लदूना रोड)
3.काला->१. रतनजी बाग नाहरगढ़ २.पचांयत भवन, खड़ावदा ३. बड़ावदा (खाचरौद)
4.मुजावदिया- >
१.जमुनियाशंकर (गुंदी आलोट) २. कराड़िया (आलोट) ३. मेलखेड़ा
४. रामपुरा
५.अचारिया, कचारिया, मंडावल
5.चौधरी - > १. खड़ावदा, (गरोठ) २. रामपुरा,
३.नेगरून ,ताल के पास
6.डपकरा-> 1.बराड़ा बराड़ी (खात्याखेड़ी)
2.आवर पगारिया (झालावाड़)
7.मेहता- > १.गरोठ बावड़ी में, २.रुनिजा
8.धनोतिया- > जगत भेरू रूनिजा-घसोई मे २.कबीर बाड़ी रामपुरा ३.ताल मंण्डावल बावड़ी मे
४.खेजड़िया
9.संघवी-> खड़ावदा (पंचायत भवन)
10.दानगढ़-> १ आवरा (चंदवासा के पास)
२.बुच बेचला (रामपुरा)
घाटिया- लदूना रोड़ सीतामऊ
मुन्या- गरोठ बावड़ी में
घरिया- बरसी-करसी (महिदपुर रोड़)
मंडावल (आलोट)
रत्नावत - पंचपहाड़, भैसोदामंडी
सावन (भादवामाता रोड)
बरखेड़ा पंथ
फ़रक्या- पड़दा (मनासा रोड)
बरखेड़ा गंगासा (खड़ावदा रोड)
घसोई जंगल में
बड़ागांव (नागदा)
वेद- जन्नोद (रामपुरा के पास)
साठखेड़ा
खर्ड़िया- जन्नोद (रामपुरा के पास)
मण्डवारिया- कबीर बाड़ी रामपुरा
तालाब के किनारे पावटी
दोवरे-पैवर (संजीत)
उदिया- जन्नोद (रामपुरा के पास)
कामरिया- मंडावल (तह. आलोट)
जन्नोद (रामपुरा के पास)
डबकरा- अराडे-बराडे (खात्याखेड़ी, सुवासरा रोड)
सावन, चंदवासा, रुनिजा
भैसोटा- बरसी-करती (महिदपुर रोड के पास)
मंडावल (तह. आलोट)
भूत- गरोठ बावड़ी में
रुनिजा – घसोई
नभेपुरिया - वानियाखेड़ी, (खड़ावदा के पास)
श्रीखंडिया- इन्दौर सेठजी का बाग
🌷श्री जांगडा पोरवाल समाज में प्रचलित उपाधियाँ (पदवियाँ)
**********************
पदवी ---- वास्तविक गोत्र----------------------
चौधरी - मांदलिया, काला, धनोतिया, डबकरा, सेठिया, चौधरी या अन्य
मोदी - काला,सेठिया धनोतिया, डबकरा, दानगढ़
मरच्या - उदिया
कोठारी - मांदलिया, सेठिया या अन्य
संघवी - काला, संघवी
बटवाल - वेद
मिठा - मांदलिया
🌷समाज के प्रति हमारा उत्तरदायित्व
हमजो कुछ भी हैं और जो कुछ भी आगे बनेंगे वह समाज के कारण ही बनेंगे। हमारेये विद्यालय और जीवन की व्यावहारिक शिक्षा समाज के कारण ही हमें प्राप्तहैं। इसलिये हमें धर्म पालना चाहिए अर्थात् अपने कर्त्तव्यों का पालन करनाचाहिए।
🌷समाज के हम पर तीन ॠण माने गये हैं-
देवॠण – धरती, वायु, आकाश, अग्नि और जल आदि तत्व देवों की कृपा से ही मिले हैं।
ॠषिॠण – विद्या, ज्ञान और संस्कार ॠषिमुनियों और गुरुजनों की देन हैं।
पितृॠण – यह शरीर, मन बुद्धि अपने पिता की देन हैं।
अतः परिवार, समाज और देश के प्रति अपने कर्त्तव्यों के पालन
से ही इन ॠणों से मुक्त हो सकते हैं।