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श्री जांगड़ा पोरवाल समाज , जिला - मन्दसौर (मध्यप्रदेश) आपका हार्दिक स्वागत करता है.

विवाह के गीत


1
हल्दी
मारी हल्दी को रंग सो रंग के निबजे मालवे
मोलावे लाड़लड़ा का दाउजी माता के मन
भावे, लाड़ा थोड़ी सी अंग लगाव के यो रंग रांचनो
ओ री माता चतुर सुजान के हल्दी केवड़ो
ई तो गउं रे चना का सोगटड़ा
ई तो राय चमेली को तेल
गोरो लाड़ो बेठो सोगटड़ा
थे तो आओ मारा दाउजी देखन को
माता था देख्या सुख होय
गोरो लाड़ो बेठो सोगटड़ा

हल्दीपिठीकेगीत
म्हारी हल्दी रो रंग सुरग निपजे मालवे
मुलावे लाड़लड़ा रा दादाजी दादी रे मन रत्ने
वारी दादी चतर सुजान हरख घणो करे (आगे सभी का नाम)
बनड़ा पीठ्ड़ली दिन चार मलमल न्हायले
बनड़ा चावलिया दिन चार रूच-रूच जीमलो
बनड़ा बीड़ला है दिन चार होट रचायलो
बनड़ा काजल है दिन चार नेन घुलायलो
बनड़ा मेहन्दी है दिन चार हाथ रचायलो
बनड़ा न्हाय धोय बेठ्यो बाजोट कांई आमण घुमणो
बनड़ा भला मांगो हथीयार के सीर सेवरो
म्हेतो भला मांगा हथीयार भल सिव सेबरो
म्हेतो परणा साजनिया रि घीय बा म्हारे चीत चढे ।
बनड़ी न्हाय धोय बैठी बालोट-कोई आमण धूलणा
बनड़ी के मांगो गल के हार दांती चूढ़लो
म्हेतो भल मांगो गल भल हार दांती चुढ़लो ।
म्हेतो परणा वसुदेवजी राजोध वे म्हारे चित चढ़े

मेंहदीकेगीत
अचको मेंहदी बचको पान मेदी चाली राज दिवान
मोहे म्हारी मेदी पाछी लाव।
सूरज जी थे बाहर आय, चन्द्र्माजी थे बाहर आय
गजानन्दजी थे बाहर आय, देवी देवता थे बाहर आय
बाहर आओ थांकी राण्या ने लावो,
ऊपर वारा थांका छोरा-छोरी ने लाव
मोहे म्हारी मेदी पाछी लाव।
नोट- आगे घर वाला का जवां का मायरा वाला का भांनजा का सभी का नाम लेना।
वरद (बारात)
या रमझम करती वरद आई
आई आंगन पद दियो सुता के जगा
साय (नाम) जी तम घर वरद उतावरी,
सुता के जांगा नींद नी आवे
हम घर गौरा कंवर परणसी
बन्नी
मैं बागो की चिरिया बाबुल चुग-चुग उडजासी
बाबुल कहे बेटी रोज-रोज आना, माता कहे वार त्यौहार
भैया कहे बहना राखी पे आना, भाभज कहे क्या काम
बाबुल कहे बेटी गेणला घड़ई दूं, माता कहे गले हार
भैया कहे बहना साड़ी मंगई दूं, भाभज कहे क्या काम
बाबुल रोवे तो नदियां बहत है, माता रोवे तालाब
भैया रोवे तो रूमाल भीगत है, भाभज का दिल है कठोर

बन्ना
ओ बन्ना ऐसी क्या जल्दी मचाई रे
ऐसी बारिश में शादी रचाई रे
बन्ने के काकाजी खड़े घबराऐ रे
काकी रानी उन्हें समझाऐ रे
रातों में जोड़ा हिसाब रे दो सो ढ़ाई सो
हुए रिश्तेदार हैं
मण्डप
थे तो जाओ (नाम) पनवाड़िया
थे तो लाजो काचा पाका पान मोतिया छाया मांडवो
मैं तो अनवाड़िया, पनवाड़िया सब ढुंढिया
मानेकायी नी लादा पाका पान मोतिया छाया मांडवो
यो तो घड़यो रे घड़ायो बाजोट
जावद जाई चीतड़ी (नाम) जी को रान्या
राजा एनवानी पीया मारे मेमंद घड़ाओ घरे ओ आई वरदड़ी घरे मारे
दियड़िया को ब्याव रे एला ओ मेला में फिरा

मांड्पाकागीत
थे तो जाजो वसुदेवजी अमझेरा जी
थे तो लाजो काचा पाका पान मोतियाँ छायो माँडवो जी
म्हेतो अनवाड़ियाँ पनवाड़ियाँ सब ढुंडी जी
म्हारे कठेयन लादया पाका पान मोतियाँ छायो माँडवो जी
वो तो धार रे आगे अमझेरा जी, वो वाँसे लाजो
काचा पाका पान मोतियाँ छायो माँडवो जी
मायरा
गाड़ी तो रड़की रेत मे रे वीरा उड़ रही गगना
घेरा चालो मारा धोरी उतावरा रे मारी बेन्या
बाई जोवे वाट धोरी का चलक्या सींगड़ा
रे मारा वीराजी की पंचरंगी पाग ।
भाभज बाई को चल्कयो चुड़लो
रे मारा भतीजा का झमल्या टोप ।
माथा ने मेमंद लावजो रे वीरा रखड़ो
रतन जड़ावे, काना ने झाल घड़ावजो रे
वीरा झुमना झोल लगाओ ।
काका जो बाबा अंत घणा रे मारे गोयरे
वेता जाव माता को जायो वीरो
एकलो रे मारी वरद उजारया जाय

बत्तीसी
ई तो तीस बत्तीसी मारा दाउजी घर दी जो
मारी सैंया जामण को जायो उलट्यो
ई तो तीस बत्तीसी मारा काकाजी घर दी जो
मारी सैंया जामण को जायो उलट्यो
ई तो दाउजी मीलता हीवड़ो उलट्यो
ई तो माता बई मीलता मारां नैन झरामर लागा
मारी सैंया जामण को जायो उलट्यो
ई तो काकाजी मीलता मारो हीवड़ो उलट्यो
ई काकी बई मीलता मारां नैन झरामर लागा
मारी सैंया जामण को जायो उलट्यो
ई तो तीस बत्तीसी मारा वीरा जी घर दी जो
मारी सैंया जामण को जायो उलट्यो
ई तो वीरा जी मीलता हीवड़ो उलट्यो
ई तो भाभज बई मीलता मारे आंसूड़ा नी आया
मारी सैंया जामण को जायो उलट्यो
सेहरा
जोशीड़ा की गलिया हुई निसरयसा ये मालनी
बजाजी की हलीया हुई मिसरया रे मालनी
तो कर गया लगना को चाव गेंदा मालनी
तो कर गया पड़ला को चाव गेंदा मालनी
हां ये फुला मालनी सेवरा में चार रंग
लावजो ए मालनी, चम्पो चमेली मरवो मोगरो
ए मालनी ओर गुलदवदी का फुल मालनी
हां ये फुला मालनी सेवरा में चार रंग लावजो ए मालनी

सुहाग
लाड़ी खड़ी दाउजी दरबार
दो मारी माता अमर सुहाग
लाड़ी खड़ी काकाजी दरबार
दो मारी काकी अमर सुहाग
लाड़ी खड़ी वीराजी दरबार
दो मारी भाभज अमर सुहाग
ओरा ने दउं बाई पुड़िया बंधाय
अपनी बियड़ी ने थाल भराय
अपनी भतीजी ने थाल भराय
अपनी नंनद बई ने थाल भराय
पुड़िया को बांध्यो बाई ठुल ठुल जाय
थाल भरयो बाई को अमर सुहाग



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